
हर्बिनजर टुडे / नारायणबगड़,चमोली डेस्क । नारायणबगड़ में स्थित पुलिस रिपोर्टिंग चौकी,तहसील और उपकोषागार अपने स्थापना के बाद से ही किराए के कमरे और सरकारी भवनों में जैसे तैसे संचालित हो रहे हैं जिससे इन संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों और नागरिकों को हमेशा ही तमाम असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है।यह तीनों संस्थान अपने स्थापना के बाद वर्षों से अपने स्वयं के भवनों की बाट जोह रहे हैं लेकिन इस ओर किसी भी स्तर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।जबकि उत्तराखंड गठन के बाद यहीं के स्थानीय नेता विधायक बनकर विधानसभा में गये और वर्तमान में भी विधायक भूपालपुरा टम्टा भी सरकार और विधानसभा में विराजमान हैं।
सबसे पहले बात करते हैं सन् 2003-04 में अस्तित्व में आई पुलिस चौकी की स्थापना की।वर्तमान में यह पुलिस रिपोर्टिंग चौकी के रूप में अपग्रेड हो गया है लेकिन इतने सालों से नारायणबगड़ में पुलिस रिपोर्टिंग चौकी मात्र एक कमरे में संचालित हो रहा है।इसी एक कमरे में पुलिस कर्मियों को सारी गतिविधियों को जैसे तैसे मुश्किल हालातों में संचालित करना पड रहा है।मुख्य मोटर मार्ग व बाजार में स्थित पुलिस चौकी में टायलेट और बाथरूम जैसी कोई व्यवस्था नहीं है जिस कारण पुलिस कर्मियों को टायलेट करने के लिए ही बाइक से इधर-उधर दौडना पड़ता है।
अब बिना पुलिस चौकी भवन के इसकी गंभीरता को तब अधिक समझा जा सकता है जब पुलिस चौकी में मुल्जिमों और फरियादियों की अत्यधिक संख्या में भीड़ जमा हो जाए।वर्तमान में बहुत सारे राजस्व गांवों का रेगुलर पुलिस के अंतर्गत सम्मिलित हो जाने से पुलिस चौकी में फरियादी नागरिकों की वृद्धि हुई है जिसके लिए पुलिस चौकी का एकमात्र कमरा पर्याप्त नहीं है और कानून व्यवस्था को व्यवस्थित रूप से संचालित करने के लिए पुलिस के पास अपना स्वतंत्र भवन होने की नितांत आवश्यकता है।
पूर्व में तत्कालीन पुलिस चौकी इंचार्ज विनोद चौरसिया और तत्कालीन उपजिलाधिकारी केएस नेगी ने रिपोर्टिंग पुलिस चौकी के भवन निर्माण के लिए काफी सराहनीय कदम उठाए और पशुपालन विभाग की खाली पड़ी भूमि के लिए कई बार पशुपालन विभाग के अधिकारियों से वार्ता कर विभागीय सहमति बनाई थी तब एक आश जगी थी कि जल्द ही पुलिस के पास अपना स्वतंत्र रिपोर्टिंग भवन होगा।लेकिन इनके स्थानांतरण के बाद फिर से आज तक पुलिस रिपोर्टिंग चौकी भवन कानिर्माण अधर में लटका हुआ है।
इसी तरह सन् 2015 में थराली तहसील से पृथक होकर नारायणबगड़ में तहसील की स्थापना भी आनन-फानन तो कर दी गई और पंती में पिंडर नदी के बिल्कुल किनारे पर पुराना खाली पड़े कानूनगो चौकी भवन में तहसील संचालित होने लगी।जबकि इस तहसील परिसर से सटा हुआ बालविकास विभाग का भवन सन् 2013 की भयंकर जल प्रलय की आपदा की भेट चढ़ कर बह गया और कुछ लटके हुए अवशेष आज भी वर्तमान तहसील में कार्यरत कर्मचारियों को हर बारिश के दिन भयभीत करते रहता है।
मानसून के दरम्यान पिंडर नदी का जल स्तर बढ़ने से तहसील कार्यालय में कार्यरत कर्मियों को डर के साए में रोजमर्रा के कामकाज निपटाने की विवशता आमतौर पर देखी जा सकती है।इस तहसील का दुर्भाग्य कि इसमें अस्थाई रूप से कभी तहसीलदार की नियुक्ति भी नहीं हो पाई।पूर्व में तत्कालीन नायब तहसीलदार के पद पर कार्यरत सुरेन्द्र सिंह देव ने पिंडर नदी का रोद्र रूप देखते हुएअपने कार्यकाल के दौरान तहसील भवन के लिए काफी प्रयास किए, लगातार काफी विभागीय पत्राचार भी उन्होंने तहसील भवन के लिए किए।तब उन्होंने उद्यान विभाग की खाली पड़ी भूमि का प्रपोजल तैयार कर शासन के लिए भेजी लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद तहसील भवन का मामला भी एक बार फिर से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।
इसी तरह अप्रैल 2012 में यहां अस्तित्व में आया उपकोषागार भी अपने स्थापना के बाद डेढ़ साल तक पुराने गल्ला गोदाम बाजार में एक किराए के भवन में संचालित किया जा रहा था लेकिन सन् 2013 की जल प्रलय के पश्चात उपकोषागार ने राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय नारायणबगड़ के भवन में शरण ली और आज तक उपकोषागार भी अपने एक स्वतंत्र भवन की राह देख रहा है,इसके भवन निर्माण की भी किसी ने जिम्मेदारी समझते हुए सुध नहीं ली।लगातार तेरह साल से उपकोषागार राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय के भवनों में संचालित हो रहा है जिससे इस विद्यालय के छात्र-छात्राओं को पठन-पाठन के लिए कक्षा-कक्षाओं की कमी होने और विद्यालय परिसर में संचालित उपकोषागार में दिनभर आने-जाने वाले लोगों के कारण शैक्षणिक कार्यों में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष प्रकाश नेगी बताते हैं कि बहुत बार उपकोषागार को विद्यालय भवन छात्र-छात्राओं के हित में रिक्त करने का आग्रह किया जा चुका है।उन्होंने बताया कि विद्यालय में तय समय-सीमा पर प्रतिदिन शैक्षणिक कार्यों के बाद अवकाश हो जाता है तो विद्यालय परिसर में उपकोषागार संचालित होने के चलते मुख्य द्वार खुला रहता है जिस कारण बहुत बार अराजक तत्वों द्वारा विद्यालय में स्थापित उपकरणों और अन्य चीजों को नुकसान पहुंचा दिया जा रहा है।उपकोषाधिकारी कमल पाशा रब्बानी ने बताया कि वर्तमान में उपकोषागार भवन के लिए राज्य सरकार की डेढ नाली भूमि की स्वीकृति तो मिल गई है लेकिन भवन निर्माण के लिए धन आवंटन नहीं हो पाया है।
इस तरह सरकार के तीन-तीन संस्थान अनाथों की तरह अपने एक स्वतंत्र घर की आश लगाए हुए हैं लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों,सरकार और जनता के प्रतिनिधियों ने कभी इन तीनों महत्वपूर्ण संस्थानों के लिए भवनों की आवश्यकताओं की ओर ध्यान ही नहीं दिया जबकि उत्तराखंड राज्य गठन के बाद लगातार नारायणबगड़ मूल के विधायक ही जीतकर विधानसभा में पहुंचे लेकिन किसी ने भी अभी तक तहसील भवन,पुलिस चौकी भवन तथा उपकोषागार भवन के लिए कार्य करने की दिशा में कोई जहमत नहीं उठाई।अब गौर करने वाली बात यह होगी कि कब-तक इन तीनों महत्वपूर्ण संस्थानों के लिए सरकार उनका भवन तैयार करके देती है ताकि इस संस्थानों में संबंधित विभागीय गतिविधियां सहजता से संपादित हो सकेंगे।
रिपोर्ट – सुरेन्द्र धनेत्रा