
हर्बिनजर टुडे डेस्क / कर्णप्रयाग । रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह उत्तराखंड की 125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग ब्रॉड गेज रेल परियोजना से जुड़ी है। इस परियोजना की टनल-8 भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग है।
इसी सुरंग में पहली बार टीबीएम यानी टनल बोरिंग मशीन की सफलता मिली है। यह एक ऐतिहासिक पल था। इस मौके पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भी मौजूद थे। उन्होंने खुद साइट पर जाकर इस पल को देखा। यह हिमालयन रेल कनेक्टिविटी के लिए एक बड़ी कामयाबी है। रेल मंत्री का दौरा वहां काम करने वाले मजदूरों और अधिकारियों के लिए प्रेरणा बना, जिन्होंने इस सफलता के लिए दिन-रात मेहनत की थी।
14.57 किलोमीटर लंबी इस सुरंग की खुदाई आधुनिक टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) ‘शक्ति’ की मदद से की गई, जो भारत की सुरंग निर्माण तकनीक के इतिहास में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह पहली बार है जब देश के पहाड़ी इलाकों में रेल सुरंग बनाने के लिए टीबीएम तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। 9.11 मीटर व्यास वाली इस सिंगल-शील्ड रॉक टीबीएम ने काम में जो तेजी और सटीकता दिखाई है, वह वैश्विक स्तर पर एक नया मापदंड स्थापित करती है।
आरवीएनएल के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर प्रदीप गौर ने कहा, “यह सफलता भारत के पहाड़ी राज्यों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के सरकार के मिशन में एक बड़ा कदम है। यह सिर्फ तकनीकी जीत नहीं, बल्कि आरवीएनएल की मेहनत, हिम्मत और चुनौतीपूर्ण इलाकों में बड़े प्रोजेक्ट पूरा करने की ताकत दिखाती है। शक्ति ने न सिर्फ चट्टानें तोड़ीं, बल्कि एक बेहतर और जुड़े हुए उत्तराखंड के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना पांच हिमालयी जिलों में देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौचर और कर्णप्रयाग जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ेगी। 125 किलोमीटर की इस रेल लाइन का 83% हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरेगा, जिसमें 213 किलोमीटर से ज्यादा की मुख्य और निकास सुरंगें शामिल हैं। अवधारणा से लेकर कमीशनिंग तक, इस परियोजना का निष्पादन आरवीएनएल द्वारा किया जा रहा है।
टनल-8, जो देवप्रयाग और जनासू स्टेशनों के बीच स्थित दोहरी सुरंगें हैं, का निर्माण दो टीबीएम (टनल बोरिंग मशीन) ‘शक्ति’ और ‘शिवा’ की मदद से किया जा रहा है। इनकी खुदाई व्यास 9.11 मीटर है और ये उन्नत सपोर्ट सिस्टम्स से लैस हैं। शक्ति ने पहली सफलता हासिल कर ली है, जबकि दूसरी टीबीएम ‘शिवा’ के जुलाई 2025 तक ब्रेकथ्रू हासिल करने की उम्मीद है।
टीबीएम को कई लॉजिस्टिक और भूवैज्ञानिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 165 मीट्रिक टन वजनी मशीन के पार्ट्स को मुंद्रा बंदरगाह से हिमालय की तंग सड़कों और पुराने पुलों से होते हुए साइट तक लाया गया। यह सुरंग भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र में है और टेक्टोनिक रूप से सक्रिय सेसमिक जोन IV में आती है इसलिए इसे बनाने में खास डिजाइन और लगातार उन्नत भूवैज्ञानिक जांच की जरूरत पड़ी।
इस परियोजना से ऋषिकेश से कर्णप्रयाग का सफर सात घंटे से घटकर सिर्फ दो घंटे का हो जाएगा। यह हर मौसम में दूरदराज के इलाकों तक पहुंच आसान करेगा और उत्तराखंड में पर्यटन व आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा। यह चार धाम रेल परियोजना को पूरा करने की दिशा में भी बड़ा कदम है।
इस उपलब्धि के साथ आरवीएनएल ने भारत के सबसे मुश्किल इलाकों में आधुनिक निर्माण तकनीक में अपनी मजबूत जगह बनाई है। यह सफलता न सिर्फ एक सुरंग की कहानी है, बल्कि एक नए, मजबूत और कनेक्टेड भारत की शुरुआत है।